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Thursday, 26 July 2012

राष्ट्र के असंख्य "धृतराष्ट्र"

धृतराष्ट्र पौराणिक काल के एक राजा का नाम है एवं सभी इससे परिचित हैं क्योंकि भारत की एक प्रमुख धर्म पुस्तक में ये नाम प्रमुखता से लिखा गया है| इन सब के बावजूद कोई भी इस नाम से अपनी तुलना नहीं करना चाहता| एक राजा के प्रति इतनी नकाराकता सिर्फ उसके पुत्र मोह की वजह से जिसकी वजह से वह अपने राजधर्म का पालन नहीं कर पाया|
                     हाल ही में हमारे देश की एक सशक्त महिला किरण बेदी ने हमारे राष्ट्र के प्रधानमंत्री को ही धृतराष्ट्र कह दिया| शायद गलत भी नहीं कहा क्योकि हमारे   प्रधानमंत्री ने वो ही गलतियां की जो एक समय मे धृतराष्ट्र ने की थी फर्क इतना ही के वहां कारण पुत्रमोह था और यहाँ पार्टीमोह है| पर किरण को ये बयान देने से पहले ये ध्यान में रखना चाहिए था के क्या सिर्फ प्रधानमंत्री ही धृतराष्ट्र हैं या और भी कोई हैं| प्रधानमंत्री राष्ट्र का नेतृत्व करता है और हो सकता है जिन्होंने उन्होंने चुना वो भी ऐसे ही हों|
                    किरण बेदी को प्रधानमंत्री को धृतराष्ट्र बताने से पहले ये सोचना चाहिए था के क्या इस देश के हर घर में धृतराष्ट्र नहीं रहता है| धृतराष्ट्र हर घर में विराजमान है कहीं माता पिता के रूप मे, कहीं पति पत्नी के रूप मे और कही भाई बहन के रूप मे|
                    पहले बात माता पिता की ही करते है , हर बच्चे में कुछ न कुछ कमियाँ या बुराइयां होती है लेकिन ज्यादातर माता पिता अपने बच्चों की कमियों को नज़रंदाज़ करते हैं| वो सोचते हैं समय के साथ सब सही हो जाएगा लेकिन वो गलत होते है| समय के साथ साथ परिस्थितियाँ और भी भी विषम होती जाती है और फिर अंततः वही होता है जो महाभारत मे हुआ था, माता पिता देखते रहते हैं और सब कुछ छिन जाता है| और यही बात हर रिश्ते मे विराजमान है|
                    अब हम अगर राष्ट्र की बात करें तो वहां तो धृतराष्ट्र बनने  की होड़ मची हुई है| वोट लेने वाला भी औए वोट देने वाला दोनों ही धृतराष्ट्र हैं| देने वाला आँख बंद करके वोट देता है| और लेने वाला वोट मिलते ही आँख बंद कर लेता है| और ये क्रम कई वर्षों से चल रहा है| और यहाँ तो आपको भीष्म पितामह भी मिल जाएंगे जो खुद अच्छे होते हुए भी गलत का साथ देते है| 
                     कहने का अभिप्राय है की हम सब मे एक धृतराष्ट्र छुपा हुआ है| हम देखते हैं ,सोचते है ,समझते भी है के गलत हो रहा है लेकिन आँख बंद करके सब कुछ नज़र अंदाज़ कर देते हैं| और फिर यही बात कोई बोल दे तो उसे सभी नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं| तो समाज को बदलना है तो हमें हमारे राष्ट्र के असंख्य धृतराष्ट्र के समकक्ष को जगाना होगा और उन्हें सही और गलत में फर्क करना भी सिखाना होगा|