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Sunday, 30 March 2014

उमीदों की राहें

आजकल अक्सर निकल जाया करता हूँ,  
उन रास्तों को टटोलने जहाँ कभी हम गुज़रा करते थे - 
बहुत सी बातें किया करते थे, 
कुछ सपने बुना करते थे,
लड़ा करते थे, हंसा करते थे और खुल के जिया करते थे |

अब उन रास्तों से गुज़रते हुए - 
मैं सहम जाता हूँ, 
ठहर जाता हूँ, 
उलझ जाता हूँ,  
क्यूंकि मैं खुद को अकेला पाता हूँ | 

राह में कई जगह कुछ बिखरे टुकड़े पड़े मिलते हैं,  
मुझे अपने बीच देख वो भी खिल उठते हैं, 
मैं उन्हें समेट के अपने पास ले आता हूँ, 
और उन्हें जोड़ते-जोड़ते पाता हूँ -
वो कुछ और नहीं, मेरे ही टूटे बिखरे सपने थे |

उन अनजान राहों में - 
आज भी सब कुछ वही है, 
पर कुछ कमी है,
अब वहां रूमानियत नहीं, गुस्से और नफरत की दीवारे हैं, 
अब वहां तुम नहीं, सिर्फ तुम्हारी यादें हैं |  

पर फिर भी चला जाता हूँ उन राहों पर, 
उम्मीद लिए, कि कभी वो रास्ते मुझे तुम तक ले जाएँ, 
नफरतों की दीवारें बिखर जाएँ, 
टूटे सपने फिर से जुड़ जाएँ, 
एक नयी शुरुआत हो जाए, और हम फिर से एक हो जाएँ |